ओ३म्

About Vaidikgurukul

प्राचीन काल से भारत में शिक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गुरुकुल परंपरा हमारी सबसे पुरानी और श्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था रही है। वैदिक युग से ही गुरुकुल शिक्षा पद्धति हमारे समाज का आधार रही है। उस समय विद्यार्थी गुरु के सान्निध्य में रहकर ज्ञान अर्जित करते थे और यह शिक्षा केवल शास्त्रों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें जीवन मूल्यों, नैतिकता, और समाज कल्याण का समावेश भी होता था।

भारत को 'विश्व गुरु' का गौरव प्राप्त था, और यह गौरव गुरुकुल शिक्षा पद्धति के कारण ही संभव हुआ। दुर्भाग्यवश, समय के साथ इस महान परंपरा का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया है।

हमारा उद्देश्य इस अमूल्य गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करना और इसे आधुनिक समाज में फिर से स्थापित करना है। हम घर-घर तक वैदिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी हमारे प्राचीन ज्ञान और संस्कारों से लाभान्वित हो सकें। आइए, मिलकर इस महान परंपरा को पुनः जीवंत करें और भारत को उसके गौरवशाली अतीत से जोड़ें।



आचार्य दीपक 

आचार्य दीपक घोष एक समर्पित वैदिक विद्वान, धर्माचार्य, और आध्यात्मिक शिक्षक हैं, जो सनातन धर्म के गहन अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए विख्यात हैं। वे स्थितप्रज्ञ संस्थान के संस्थापक हैं, जो वैदिक ज्ञान, नैतिकता और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। आधुनिक शिक्षा में उन्होंने बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (कंप्यूटर साइंस) की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात, उन्होंने 10 वर्षों तक वेद, उपनिषद, भगवद गीता, मनुस्मृति और शास्त्रों का गहन अध्ययन एवं स्वाध्याय किया। उनकी इस साधना ने उन्हें सनातन धर्म और भारतीय दर्शन के गूढ़ रहस्यों को समझने और समाज को दिशा देने में सक्षम बनाया। आचार्य दीपक का उद्देश्य प्राचीन भारतीय परंपराओं और वैदिक ज्ञान को आधुनिक समाज तक पहुँचाना है। आचार्य दीपक ने वैदिक शिक्षा और धर्म से संबंधित कई पुस्तकों का लेखन किया है, जिनमें "वैदिक सनातन धर्म शंका समाधान" और "नैतिक शिक्षा जीवन का आधार" शामिल हैं। ये पुस्तकें धर्म, तर्क, विज्ञान और शास्त्र प्रमाण के आधार पर जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं। आचार्य जी गुरुकुल परंपरा को पुनर्स्थापित करने और वैदिक शिक्षाओं को घर-घर तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके प्रयासों का उद्देश्य नैतिकता, आध्यात्मिकता, और जीवन मूल्यों को बढ़ावा देना है। उन्होंने न केवल वैदिक शिक्षा के प्रति समाज को जागरूक किया है, बल्कि इसे सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने का कार्य भी किया है। आचार्य जी का जीवन वैदिक सिद्धांतों और सनातन धर्म की सेवा के प्रति पूर्णतः समर्पित है। उनका मानना है कि हमारी प्राचीन धरोहर को समझकर और अपनाकर ही हम एक समृद्ध, शांतिपूर्ण और सशक्त समाज की रचना कर सकते हैं।


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